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लेखनी कहानी - भारत का एकमात्र गाँव जहा लगता है भूतो का मेला - डरावनी कहानियाँ

भारत का एकमात्र गाँव जहा लगता है भूतो का मेला - डरावनी कहानियाँ

 किसी के हाथ में जंजीर बंधी है, कोई नाच रहा है तो कोई सीटियां बजाते हुए चिढ़ा रहा है, ये वे लोग है जिन पर ‘भूत’ सवार है। यह नजारा है मध्यप्रदेश में बैतूल जिले के मलाजपुर गांव का जहां लगता है ‘भूतों का मेला’।मलाजपुर , भारत के बिलकुल बीच में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में है जहा पिछले कई वर्षो से भारत का एकमात्र भूतो को मेला लगता है | इस गाँव में पुरे देश के अलग अलग हिस्सों से लोग बुरी आत्माओ को दूर भगाने के लिए यहा आते है |प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले में एक अदभुत मेला लगता है. 
मलाजपुर के इस बाबा के समाधि स्थल के आसपास के पेड़ों की झुकी डालियाँ उल्टे लटके भूत-प्रेत की याद ताजा करवा रही थी। ऐसी धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरीर में समाहित प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उल्टा लटक जाता है।

प्रतिवर्ष मकर संक्राति के बाद वाली पूर्णिमा को लगने वाले इस भूतों के मेले में आने वाले सैलानियों में देश-विदेश के लोगों की संख्या काफी मात्रा में होती है। खुली नंगी आँखों के सामने दुनिया भर से आये लोगों की मौजूदगी में हर साल होने वाले इस मेले में लोग डरे-सहमे वहाँ पर होने वाले हर पल का आनंद उठाते हैं। गुरू साहब बाबा की समाधि पर लगने वाले वाले विश्व के भूतों के एक मात्र मेले में पूर्णिमा की रात का महत्व काफी होता है। यह मेला एक माह तक चलता है। ग्राम पंचायत मलाजपुर इसका आयोजन करती है। कई अंग्रेजों ने पुस्तकों एवं उपन्यासों तथा स्मरणों में इस मेले का जिक्र किया है। इन विदेशी लेखकों के किस्सों के चलते ही हर वर्ष कोई ना कोई विदेशी बैतूल जिले में स्थित मलाजपुर के गुरू साहेब के मेले में आता है।
सतपुड़ा में मध्यप्रदेश के दक्षिण में बसे गोंडवाना क्षेत्र के जिलो में से एक बैतूल विभिन्न संस्कृतियों एवं भिन्न-भिन्न परंपराओं को मानने वाली जातियों-जनजातियों सहित अनेकों धर्मों व संस्कृतियों के मानने वाले लोगो से भर पूरा है। इस क्षेत्र में पीढ़ियों से निवास करते चले आ रहे इन्ही लोगों की आस्था एंव अटूट विश्वास का केन्द्र कहा जाने वाला गुरू साहेब बाबा का यह समाधि स्थल पर आने-वाले लोगों के बताए किस्से-कहानियाँ लोगों को बरबस इस स्थान पर खींच लाती हैं।

क्षेत्र की जनजातियों एवं अन्य जाति, धर्म व समुदायों के बीच आपसी सदभाव के बीच इन लोगों के बीच चले आ रहे भूत-प्रेत, जादू-टोना, टोटका एवं झाड़-फूंक का विश्वास यहाँ के लोगों के बीच सदियों से प्रचलित मान्यताओं के कारण अमिट है।देवी-देवता-बाबा के प्रति यहाँ के लोगों की अटूट आस्था आज भी देखने को मिलती है। विशेषकर आदिवासी अंचल की गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में जिसमें पीढ़ी-पीढ़ी से मौजूद टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति-रिवाज निवारण प्रक्रिया आज भी पाई जाती है।

अकसर देखने को मिलता है कि कमजोर दिल वाले व्यक्तियों के शरीर के अंदर प्रवेशित होकर व्यक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीकों से मानसिक स्थिति असंतुलित करके कष्ट पहुंचाती है। इन्हीं परेशानियों व भूतप्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाले स्थानों में मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम मलाजपुर में स्थित गुरूसाहब बाबा का समाधि स्थल अब पूरी दुनिया में जाना-पहचाना जाने लगा है। अभी तक यहाँ पर केवल भारत के विभिन्न गांवों में बसने वाले भारतीयो को जमावड़ा होता था लेकिन अब तो विदेशो से भी विदेशी सैलानी वीडियो कैमरों के साथ -साथ अन्य फिल्मी छायाकंन के लिए अपनी टीम के साथ पहुँचने लगे है।

मलाजपुर के गुरू साहेब बाबा के पौराणिक इतिहास के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। जनश्रुति है कि बैतूल जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर विकासखंड चिचोली जो कि क्षेत्र में पाई जाने वाली वन उपजों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रख्यात हैं। इसी चिचोली विकासखंड से 8 किलोमीटर दूर से ग्राम मलाजपुर जहाँ स्थित हैं श्रद्धा और आस्थाओं का सर्वजातिमान्य श्री गुरू साहेब बाबा का समाधि स्थल।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस स्थल का पौराणिक इतिहास यह है कि विक्रम संवत 1700 के पश्चात आज से लगभग 348 वर्ष पूर्व ईसवी सन 1644 के समकालीन समय में गुरू साहब बाबा के पूर्वज मलाजपुर के पास स्थित ग्राम कटकुही में आकर बसे थे। बाबा के वंशज महाराणा प्रताप के शासनकाल में राजस्थान के आदमपुर नगर के निवासी थे। अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य छिड़े घमसान युद्ध के परिणामस्वरूप भटकते हुये बाबा के वंशज बैतूल जिले के इसरूरस्थ क्षेत्र में आकर बस गए। बाबा के परिवार के मुखिया का नाम रायसिंह तथा पत्नी का नाम चंद्रकुंवर बाई था जो बंजारा जाति के कुशवाहा वंश के थे। इनके चार पुत्र क्रमश: मोतीसिंह, दमनसिंह, देवजी (गुरूसाहब) और हरिदास थे।
श्री देवजी संत (गुरू साहब बाबा) का जन्म विक्रम संवत 1727 फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को कटकुही ग्राम में हुआ था। बाबा का बाल्यकाल से ही रहन सहन खाने पीने का ढंग अजीबो-गरीब था। बाल्यकाल से ही भगवान भक्ति में लीन श्री गुरू साहेब बाबा ने मध्यप्रदेश के हरदा जिले के अंतर्गत ग्राम खिड़किया के संत जयंता बाबा से गुरूमंत्र की दीक्षा ग्रहण कर वे तीर्थाटन करते हुये अमृतसर में अपने ईष्टदेव की पूजा आराधना में कुछ दिनों तक रहें इस स्थान पर गुरू साहेब बाबा को ‘देवला बाबा’ के नाम से लोग जानते पहचानते हैं तथा आज भी वहाँ पर उनकी याद में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। इस मेले में लाखों भूत-पेत बाधा से ग्रसित व्यक्तियो को भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। गुरू साहेब बाबा उक्त स्थानों से चंद दिनों के लिये भगवान विश्वनाथ की पुण्य नगरी काशी प्रवास पर गये, जहां गायघाट के समीप निर्मित दरभंगा नरेश की कोठी के पास बाबा का मंदिर स्थित है।
बाबा के चमत्कारों व आशीर्वाद से लाभान्वित श्रद्धालु भक्तों व भूतप्रेतों बाधा निवारण प्रक्रिया के प्रति आस्था रखने वाले महाराष्ट भक्तों द्वारा शिवाजी पार्क पूना में बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया। गुरू साहब बाबा की समाधि स्थल पर देखरेख हेतु पारिवारिक परंपरा के अन सन 1967 से विराजित हुये। यहां पर विशेष उल्लेखनीय यह है कि वर्तमान महंत को छोड़कर शेष पूर्व में सभी बाबा के उत्तराधिकारियों ने बाबा का अनुसरण करते हुये जीवित समाधियाँ ली।

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